प्रकृति की विभिन्न कृतियों में पेड -पौधों का स्थान सर्वोपरि है। सही अर्थों में तो ये प्रत्यक्ष देवता हैं, जो केवल देते हैं ,बदले में कुछ भी नहीं लेते। प्राणवायु के भंडार पेड -पौधे ही हैं। आयुर्वेद तो वनस्पतियों पर ही आधारित है। वर्षा का प्रमुख कारण भी पेड -पौधे ही है। जहाँ पेड -पौधे होते हैं वहाँ जाडे में गरमी और गरमी में ठंडक मिलती है। वनस्पति जीवधारियों के वंशवृद्धि में प्रत्यक्ष रूप से सहायक हैं। पीपल और तुलसी तो सबसे अधिक प्राणवायु देते हैं। गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ। भगवान शिव का सबसे प्रिय वृक्ष बरगद है, तो ब्रह्माजी का प्रिय वृक्ष पाकड है।

  नौ ग्रहों को तो नौ समिधाएँ प्रिय हैं जो निम्न हैं-

सूर्य –     अर्क( मदार)चंद्र-      पलाशमंगल-   खैरबुध-      अपामार्ग ( चिचिडी  )           गुरु-        पीपलशुक्र –     गूलरशनि-     शमीराहु-      दूर्वाकेतु-      कुश

तुलसी के बिना तो भगवान भोग तक ग्रहण नहीं करते।हमारे जीवन में आयुर्वेदिक, ज्योतिषीय और तांत्रिक दृष्टि से पेड -पौधों का विशेष महत्व है। नीम के वृक्ष तो आज भी देवियों के मंदिरों के पास मिलते हैं।अच्छे-अच्छे साधको,ऋषियों और अवतारी पुरुषों को यदि ज्ञान मिला है तो वृक्षों के नीचे ही। करोडों पुत्र एक वृक्ष की बराबरी नहीं कर सकते हैं। हमारा पर्यावरण यदि सुरक्षित है तो इन वृक्षों के कारण ही। और युगों में तो लोग फल,कन्द-मूल ही खाते थे। अन्नाहारी कम ही थे।देवदार के लकडी से यज्ञादि सम्पन्न किए जाते हैं। गूलर आदि दुग्ध वाले वृक्षों से हवन के समय घी की कटोरी और स्रुवा बनाया जाता है। यहाँ तक कि प्राचीन काल में अरणिमंथन द्वारा यज्ञकुण्ड में आग प्रज्वलित किया जाता था। वह अरणि शमी वृक्ष का होता है।आम की मंजरी तो कामदेव का प्रतीक है। इसकी मदगन्ध काम को उद्दीप्त करती है। कामनाओं की पूर्ति के लिए आम की लकडी से हवन करने का भी विधान मिलता है। चंदन तो पवित्र है और पापों का शमन करने वाला है,विपत्तियों को दूर करने वाला तथा लक्ष्मी को देने वाला है।रुद्राक्ष के वृक्ष व रुद्राक्ष भगवान आशुतोष को अत्यंत प्रिय है। भगवान दत्तात्रेय तो गूलर के वृक्ष के नीचे ही तपस्या करते थे।संजीवनी बूटी का नाम तो प्रायः सभी ने सुना होगा।बिल्ववृक्ष के नीचे लक्ष्मी -साधना की जाती है।ग्रहों के पीडा को कम करने के लिए उनके मूल को धारण करने का विधान है।
वृक्ष प्रदूषण को कम करते हैं। वृक्षों में जीवन है, इसको विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है।ये हमारे माता -पिता तुल्य हैं। इनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।

अलख निरंजन।।।

राम प्रकाश उपाध्याय, अमौरा गाजीपुर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *