मेरे पिता जी हमेशा कहते हैं, अगर किसी परिवार को अच्छा करना है, तो परिवार के बच्चे अपने माता पिता से अच्छा करें तभी ऐसा संभव है, अब कल मेरी बेटी अदित्री किसी बच्चे को देख कर उसको कॉपी करना चाह रही थी, क्योँकि वो बच्चा कुछ अच्छा कर रहा था, इस वजह से मेरी बेटी भी मुझे इम्प्रेस करना चाह रही थी, पर किसी कारण वैसा कर नहीं पा रही थी, क्योँकि हर बच्चे की अपनी अपनी प्रतिभाएं होती हैं, जैसे कुछ चीजों में जिसमे अदित्री अच्छा करती है, दूसरे बच्चे नहीं कर पाते, और खैर बच्चों में एक दूसरे को कॉपी करने की प्रथा रहती भी है. फिर पिता और पुत्री की वार्ता हुई और मैंने अपने पिता जी की बात बताते हुए उसको कहा, की तुमको बस मुझसे थोड़ा सा अच्छा बनाना है, बाकी कोई कैसा भी करे बहुत सोचना नहीं है. अपने पिता जी की बात मैंने कह तो दी, पर ये छोटी सी बात में कितनी गहराई है बाद में सोचने पर पता चला. अब भला अच्छा किसको कहे, मै सफल हूँ या नहीं इसका मेरी अपनी और लोगो की अपनी सोच हमेशा रहेगी. मेरी सफलता एक अच्छे इंसान होने में ज्यादा है या मेरी प्रोफेशनल छेत्र में मेरी प्रगति. ऐसे कई सवाल आये, और फिर मुझे लगा की इसके लिए एक व्यवहारिक मापदंड लेना सही रहेगा, क्योँकि आज के जुग में अगर आप अच्छे इंसान हैं , पर प्रोफेशनली अच्छा या ठीक ठाक नहीं कर रहे तो फिर अच्छे इंसानो को भला अब कौन पूछता है. अब इस स्तिथि में मैं बच्चे को अपना कैसा रूप दिखाऊँ, फिर सोचा सबसे अच्छा रहेगा की अपने अंदर सबके लिए एक सम्मान का भाव लाऊँ, अपने वाणी में सबके लिए मधुरता, प्रकृति का सम्मान करने वाला और जबभी हो समाज के दुःख और सुख में शामिल होने वाला पिता बनू , मेरे पिता जी ने यही तो मुझे सिखाया है, उम्मीद करूँगा की खुद अपने अंदर परिवर्तन लाता रहूँ , क्योँकि बच्चे सबसे पहले हमको ही कॉपी करते हैं और हमसे ही सीखते हैं. क्योँकि वो हमेशा हमको इम्प्रेस करना चाहते हैं. आज भी मैं किसी काम को कर यही सोचता हूँ , की इस विषय में या मेरे इस काम पर मेरे माता पिता क्या सोचेंगे।

आभार
वरुण 

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