इस बार जब कैंप के आर्ट एंड क्राफ्ट के ट्रेनर स्कूल गए तो स्कूल में कम ही बच्चे थे, इस बात से मैं थोड़ा निराश भी हुआ, और मानव स्वाभाव के कारण सोचा, चलो इस बार से बस कैंप की सुविधा गांव के बच्चों को दे देना है, वो आये या न आये मुझे क्या. पर साल में यही समय होता है जब मैं अपने गांव के बच्चों से समर कैंप के सिलसिले में बात करता हूँ.और जो मित्र मुझे अच्छे से जानते होंगे वो समझ सकते हैं की जिस काम में मैं लगता हूँ उसके पीछे पड़ने की मेरी बुरी आदत है, फिर क्या था, आज कुछ बच्चों को फ़ोन लगा दिया जिनका नंबर पिछले साल से मेरे पास समर कैंप के वजह से था. बच्चे मुझसे बात कर इतना प्रसन्न हुए की मैं बता नहीं सकता, आज उनसे बच्चों के स्कूल न जाने का कारण पुछा तो पता चला अभी फसलों की कटाई इत्यादि का समय है सो वो कृषि कार्य में व्यस्त है. सुनाने में ये एक साधारण सी बात लगी, पर बाद में सोचा हम लोगो के बच्चे एप्पल पीकिंग, स्ट्रॉबेरी पीकिंग इत्यादि मनोरंजन के लिए करते हैं और कुछ बच्चों को यह सब काम मजबूरी में करना पड़ता है. भगवन को बहुत धन्यवाद दिया की हमलोग का जन्म ऐसे परिवार में हुआ और हम लोगो के माता पिता ने हम लोगो का इतना ध्यान दिया और जिस वजह से हम लोग आज यहां हैं, नहीं तो हम भी उन्ही बच्चों जैसे होते! ऐसा नहीं है की उन सभी बच्चों की माँ बाप ध्यान नहीं देते, पर उन लोगो की भी अपनी आर्थिक और बहुत सी दूसरी मजबूरियां होती हैं. बच्चों के स्कूल न जाने का मेरा गुस्सा शांत हो गया , क्योँ की जिस विद्यालय पर कैंप का आयोजन या हमलोग सहायता करते हैं वहां ज्यादातर आर्थिक रूप से गरीब बच्चे और मुख्यतः बच्चियाँ पढ़ती हैं. बच्चों से बात कर मुझे लगा, की अगर हम भगवान् को धन्यवाद इस बात के लिए करते हैं, की हमे ऐसा परिवार और माता पिता मिले, तो क्योँ न और अच्छा किया जाये की वो बच्चे जो आधारभूत सुविधाओं से वंचित हैं, वो भगवान् को इस बात के लिए धन्यवाद दे की हम लोग उनके गांव से हैं और उनका ख्याल रखते हैं, आज बच्चों और उनके माताओ की बातों को सुनकर मुझे ऐसा ही महसूस हुआ. उसके बाद एक ऐसा उत्साह आया की स्वाति,अभिनव , अमरेश भैया और मित्र अमित से बच्चों के सर्टिफिकेट्स , मेडल इत्यादि के लिए वार्ता हुई और भगवान् के आशीर्वाद से सब चीज़े आसानी से हो गई. सर्टिफिकेट्स और मेडल्स मोटिवेशन के लिए टोकन होते हैं, बिना आप लोगो के मोटिवेशन और सहयोग के जब मुझ जैसा आदमी जीरो हो जाता है, फिर तो ये अपने ही गांव और घर के बच्चें है. और यकीन मानिये जब ये उत्साहित होते हैं तो आप में और भी उत्साह भर देते हैं, आज की घटना कम से कम मेरे लिए इसका अच्छा उदाहरण है.
आभार
वरुण विक्रम
EXCELLENT
Thank you. Hope you were able to connect with the thoughts.
वास्तव मेँ इस प्रकार का शैक्षिक सृजनात्मक कार्य अभी तक़ किसी गाँव के सरकारी विद्यालय मेँ देखने को कम ही मिलेगा। उस समय मैँ अलवर मेँ था जब पहली बार वरुण विक्रम ने गरिमा के विचारों को मुझे बताया कि क्या अपने विद्यालय मेँ ऐसा किया जाये। मैँ भाव विह्वल हो गया, कि इतने दूर होकर भी लोग आज भी अपने गाँव के विद्यालय औऱ बच्चों के सार्वजनिक विकास के लिए प्रयासरत हैँ। उसी दिन हमने देर रात तक़ ग्रीष्म कालीन शिविर के प्रारूप औऱ सामान्य अनुदेशों के ऊपर काम कर सुबह तक़ प्रेषित कर दिया। इसको असली रूप अभिनव, वरुण औऱ स्वाति ने मिलकर दिया। फिर शुरू हो गया वरुण का grand कान्फरेन्स का hangout दौर जिसमें बच्चे, अभिभावक, अपने विद्यालय के alumni, usa मेँ रह रहे वरुण के मित्र औऱ chief patron सक्रिय रूप से शामिल हुए। जब मैँ वेद इंटरनेशनल स्कूल मेँ इस कैम्प क़ी परिचर्चा क़ी तो स्कूल के md पंकज श्रीवास्तव बड़े प्रभवित हुए औऱ प्रत्येक वर्ष विद्यालय के दो होनहार बच्चों को निशुल्क शिक्षा देनें क़ी पेशकश किये। इसमे सबका सम्मिलित प्रयास था औऱ अप्रत्याशित रूप से सफल रहा।
आभार
अमरेश
Thank you Bhaiya for your kind words. We appreciate your support.