पूर्व पीठिका के रूप में बताते चलें कि अंग्रेजी राज के पहले ग़ाज़ीपुर का मुख्य ब्यापार व आवागमन नदियों के रास्ते था।मांझी घाट पर ब्यापारियों से इम्पोर्ट ड्यूटी ली जाती थी व ग़ाज़ीपुर में एक्सपोर्ट ड्यूटी।आज़मगढ़,बस्ती,गोरखपुर और नेपाल का अधिकांश ब्यापार ग़ाज़ीपुर से ही होता था।
बंगाल की मेंन लाइन(रेलवे) व नॉर्थवेस्टर्न रेलवे के पदार्पण के बाद जनपद ब्यापार के क्षेत्र में अलग थलग पड गया।
जनपद से होकर जाने वाली पहली रेलवे लाइन दानापुर से मुगलसराय जाने वाली है जो 22 दिसंबर 1862 को कम्पलीट हुई।लेकिन इससे केवल जमानिया परगना आच्छादित हुआ।स्टेशन थे- गहमर ,भदौरा,दिलदारनगर और जमानिया।ग़ाज़ीपुर शहर को रेल मैप पर लाने के लिए दिलदारनगर से ताड़ीघाट टर्मिनस की ओपनिंग 5 अक्टूबर 1880 को हुई।ताड़ीघाट से स्टीमर या नाव से जनता जनपद मुख्यालय पहुंचती थी।बचपन में में भी अपने ननिहाल स्टीमर घाट से स्टीमर में बैठकर गंगा की उफनती धारा का रोमांच अनुभव किया हूँ।उसके बाद उतरकर किलोमीटर तक बालू में बिछे स्टील की चादरों पर एक्का या बैलगाड़ी से पटकनी अपने ननिहाल पहुंचता था।ननिहाल जैसा भी हो बचपन का स्वर्ग होता है-,मरखहे और खेलने पर प्रतिबंध लगाने वाले ताऊ व पिता के आतंक से बेपरवाह पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला लौहार सम्मेलन।खैर।
गंगा के उत्तरी हिस्से में पहली रेलवे लाइन बनारस से मऊ बनी आज़मगढ़ ज़िले में।यह लाइन 15 मार्च 1899 को चालू हो गयी।बाद में आगे के सालों में मऊ से तुर्तीपार तक बन गयी। इस लाइन पर जनपद के स्टेशन थे-माहपुर,सादात,जखनिया और दुलहपुर। 15 मार्च 1899 को ही एक ब्रांच लाइन औड़िहार से ग़ाज़ीपुर के लिए खोली गई जिसपर स्टेशन थे-सैदपुर,तराव,नंदगंज ,आँकुसपुर और ग़ाज़ीपुर सिटी व ग़ाज़ीपुर घाट। इसके बाद इसे पूर्वोत्तर दिशा में ग़ाज़ीपुर से फेफना को मऊ से बलिया होते रेल्वेगंज वाले रूट में मिला दिया गया।ग़ाज़ीपुर से फेफना का रेलवे रूट 11 मार्च 1903 को चालू हुआ और जनपद को स्टेशन मिले-सहबाज़कूली, युसुफपुर,ढोंढाडीह,करीमुद्दीनपुर और ताजपुर।बची एक लाइन औड़िहार से जौनपुर भी 21 मार्च 1904 को पूरी कर ली गयी।इस प्रकार जनपद पूरी तरह उत्तर -दक्खिन ,पूरब -पश्चिम पूरे देश से जुड़ गया।अब जनपद का 91 मील छोटी लाइन और 35 मील बड़ी लाइन रेलवे से आच्छादित था।यह स्टेटस वर्ष 1904 के 21 मार्च तक था।
अब आगे ग़ाज़ीपुर गज़ेटियर भाग-29 ,1909 में पृष्ठ 69 पर एच् आर नेविल लिखते हैं-“and little else is required save,possibly,a direct route from Ghazipur to Mau for the needs of the north-central tract.”
1905 की इस महसूस की गई कमी को हम 2019 तक नही पूरी कर पाए । सौभाग्य है इस जनपद का कि वर्तमान केंद्र सरकार रेलवे पर ध्यान दे रही है ताड़ीघाट -ग़ाज़ीपुर रोड कम रेलवे ओवर ब्रिज बन रहा है और ग़ाज़ीपुर-मऊ रेलवे की नई लाइन का सर्वे भी हो गया है।
लेकिन सोचने की बात है कि उनका देश नही था तो वे 1862 से 1904 तक जनपद में 91 मील+35मील छोटी ,बड़ी लाइन बिछाये और हम !अपना देश है , 1947 से 2019 तक नई एक किलोमीटर भी नही कर पाए। सोचो भाई सोचने से ही विकास होगा।ये सब जानकारी मैने H R nevil द्वारा लिखी ग़ाज़ीपुर गैज़ेटीएर से ली है।

सौजन्य से – अजय विक्रम सिंह, गाजीपुर

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