समुद्र गुप्त ने जिन आटवी राज्यों को पराजित किया था। उसमें एक आलवक(ग़ाज़ीपुर) *भी था।आलवक की राजधानी आटवी(वर्तमान मोहावं डीह) थी। 16 वें वर्षाकाल में भगवान बुद्ध यहां ठहरे थे।श्रावस्ती से चारिका करते किटागिरी(केराकत,जौनपुर) के रास्ते आलवी(मोहावं डीह, ग़ाज़ीपुर) पहुंचे।यहां भगवान आलवी के अग्गलाव चैत्य(रुदाइन पोखरा का सत्ती माई का भीटा) में विहार करते थे।उस समय आलवी के निवासी भिक्खु नवकर्म(गृह निर्माण)$देते थे। आलवी में इच्छानुसार विहार कर चारिका करते भगवान राजगृह पहुंचे। श्रावस्ती से आलवी की दूरी 30 योजन यानी 210 मील थी यानी 336किलोमीटर(लगभग) .काशीग्राम भी यही आलवी का ही एक अन्य नाम प्रतीत होता है।जिसे कोशल के राजा प्रसेनजित ने दहेज में मगध को उपहार दिया था। जिसके फलस्वरूप मगध की सीमा घाघरा किनारे से बढ़कर गोमती की सीमा चूमने लगी थी। V A स्मिथ का विचार हैकि ग़ाज़ीपुर, चेन चू की राजधानी का निकटतम प्रतिनिधित्व करता है और मोहावं डीह (सकर्ताली,बबेड़ी, मुगलानीचक,बड़ीबाग होते)४-5 किमी वर्तमान ग़ाज़ीपुर शहर से दूर है।परंतु हुएनसांग द्वारा अविद्धकर्ण(बलिया ,धरमौली का पोखरा)^ से चेन-चू की राजधानी(मोहावं,डीह) की दूरी 200 ली×323मीटर=64.6किलोमीटर जो कि गूगल मैप पर बलिया और मोहावं की दूरी के बराबर है।
बलिया के वर्तमान भृगु आश्रम से वाराणसी की दूरी(फाह्यान के समय 12 योजन84 मील।तथा पटना की दूरी 10 योजन=70 मील=112.70 किमी.)** थी।….क्रमशः*फ्लीट और हेमचंद्र राय चौधरी 18 आटविक राज्यों को dabhal(जबलपुर-बुंदेलखंड) से आलवक(ग़ाज़ीपुर)तक मानते हैं।** इस प्रकार बलिया से पटना(10 योजन=112 km ;फाह्यान) व बलिया से वाराणसी(12 योजन=84मील=134.4 km; फाह्यान)-बलिया को “wast solitude” लिखा है।^हुएनसांग के अविद्धकर्ण को पुरातत्वविद कार्लाइल ने धर्मनारायण पोखरा,बलिया से निरूपित किया है।जिसकी गाजीपुर से दूरी हुएनसांग ने 200ली=40 मील= 64 km होती है जो सटीक वर्तमान गाज़ीपुर- बलिया की दूरी से सटीक बैठती है।और मोहावं डीह में मौर्य कालीन वर्गाकार ईंटें भारी मात्रा में पाई गई हैं।$मोहावं डीह पर अभी एक महीने के अंदर ही ग़ाज़ीपुर-गोरखपुर हाईवे के लिए मिट्टी खुदाई में(गांव के स्वर्गीय बाबू ताराचंद सिंह के खेतमें)प्रचुर मात्रा में मृदभांड और मिट्टी के वर्तन व ईट बनाने वाले औजार बड़ी मात्रा में मिले।
सौजन्य से – अजय विक्रम सिंह, गाजीपुर


2 thoughts on “गाधिपुरम शृंखला – समुद्रगुप्त, आलवक और गाजीपुर”

  1. सराहनीय प्रयास ।पुनर्नवा विस्थापित मन को जड़ों से जोड़े रहने की भूमिका निभाने में समर्थ सिद्ध हो।मंगलकामनाएं।

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