प्रत्येक स्कूल/ कॉलेज विभिन्न तरीकों से अपने छात्रों को मूल्यों के बारे में सीखाते हैं। हम बच्चों के सर्वांगीण विकास में विश्वास रखते हैं, हम जानते हैं कि बच्चे ऐसे नागरिक हैं जो भविष्य में देश की बागडोर संभालेंगे अतः हम जो भी मूल्य उन्हें सीखाएंगें वे हमारे समाज और देश की संस्कृति बन जाएंगे। सम्मान, प्रेम और भाईचारे पर आधारित स्वर्गीय विक्रमा सिंह की परिकल्पना और विचारों को हम देश के भविष्य आर्थात् बच्चों में अंतर्निहित करना चाहते हैं, इसे हम वृहद् रूप से 3 सम्मान का नियम कह सकते हैं – 1 सम्मान- आत्मसम्मान, 2 सम्मान – दूसरों के प्रति सम्मान, 3 सम्मान सबसे महत्वपूर्ण सम्मान है जो कि पर्यावरण के प्रति हमारे सम्मान से संबंधित है। यथोचित परिश्रम और आत्मविश्लेषण करने के बाद हमने यह महसूस किया कि बच्चों में इन तीनों सम्मानों को अंतर्निहित करने के लिए सदन की अवधारणा होनी चाहिए। ये दूरदर्शी विचार तभी मूर्त रूप ले सकते हैं जब हम अपने अस्तित्व के मूल पहलुओं पर विचार करेंगे इसलिए हमने अपने अस्तित्व के लिए अनिवार्य पाँच तत्वों को लेकर सदन की अवधारणा का विचार रखा है जिनके आभाव में हम अपने अस्तित्व के बारे में सोच भी नहीं सकते।

सदन के संबंध में हमारी अवधारणा :

हमारे कॉलेज में हमने छात्रों को विभिन्न समूहों में विभाजित किया है जिन्हें “सदन” नाम से जाना जाता है और जो पाँच तत्वों पर आधारित हैं (पंचतत्व) जो कि हमारे शरीर की पाँच चेतनाओं से भी जुड़ा हुआ है और चेतनाओं के अनुभव के सकल माध्यम का कार्य करता है। भारत के सबसे प्राचीन दर्शन, सांख्य दर्शन में पंचमहाभूत की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। श्री कृष्ण ने भगवद्गीता में विवेक बुद्धि और सांख्य बुद्धि की समानता करते समय इन विचारों को पुनः दोहराया। प्रथम तत्व के रूप में भूमि का निर्माण अन्य सभी तत्वों के समावेश द्वारा किया गया और यह सभी पाँचों चेतनाओं (i) श्रवण (ii) स्पर्श (iii) दृष्टि (iv) स्वाद (v) घ्राण द्वारा महसूस की जा सकती है। अगला उच्च तत्व जह है जिसमें कोई महक नही होती है लेकिन हम जल को सुन सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, उसका स्वाद ले सकते हैं तथा उसे देख सकते हैं। अगला तत्व अग्नि है जिसे देखा, सुना एवं महसूस किया जा सकता है। वायु (मारुत) को सुना और महसूस किया जा सकता है। आकाश (व्योम) स्पर्श, दृष्टि, स्वाद एवं घ्राण चेतनाओं से परे है इसे मात्र सुना जा सकता है।
प्रत्येक सदन और उसके सदस्यों में पाई जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं तथा गुण इस प्रकार हैं-

जल सदन
यह खुशहाली को दर्शाता है। जल जीवन में संतुष्टि प्रदान करता है। छात्रों में जल के समान आनंददायक तथा अपने आस-पास अधिक से अधिक खुशहाली फैलाने वाला भाव होना चाहिए, यही इस सदन का मूल्य है। चूंकि वे “जल सदन” से संबंधित हैं अतः मानव सभ्यता के लिए जल की महत्ता के बारे में उन्हें सबसे अधिक जानकारी होनी चाहिए तथा इसकी महत्ता के बारे में लोगों को जागरुक करते रहें।

भूमि सदन
यह सहनशीलता को दर्शाता है। धरती माता हमें जीवन में सहनशील बनने की प्रेरणा देती हैं। यहाँ दिए गए मूल्य छात्रों को वृहद् मानसिकता वाला बनाते हैं तथा इसमें उन सभी मूल्यों की भी स्वीकार्यता है जो मानवता के लिए अच्छे हैं। चूंकि इस समूह से संबंधित छात्र अग्रदूत होंगे अतः वे लोगों में धरती माता की महत्ता के बारे में जागरुकता फैलाएंगें और अपने जीवन में भी उसे उतारेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि धरती पूरी तरह सुरक्षित है और हमारे आस-पास का वातावरण जीवन के लिए हमेशा बेहतर बना रहे।

व्योम सदन
यह अंतरिक्ष या प्रसार को दर्शाता है। प्रसार महत्वाकांक्षा को जन्म देता है। जो कुछ भी हम देख सकते हैं या नहीं देख पाते वो सभी इसी अंतरिक्ष में ही घटित होता है। आकाश शाश्वत होने के कारण अद्वितीय है। आकाश व्यक्ति द्वारा या अन्य माध्यमों द्वारा उत्पन्न ध्वनि का वाहक होता है। कोई भी इसे सुन सकता है। पाँचों तत्वों में आकाश ही एक मात्र तत्व है जो कि शाश्वत है इसलिए यह विभिन्न ज्ञानियों के आकर्षण का केंद्र रहा है। आकाश वाणी या दैवीय ध्वनि की संकल्पना जो कि उच्च वर्ग के ज्ञानी पुरुषों द्वारा सुनी जाती थी इस आकाश से ही संबंधित है। इस समूह से जुड़े छात्रों को तथाकथित तर्कसंगत साधन के कारण विलुप्त होने की कगार पर या विलुप्त हो चुकी प्रजातियों के कष्ट को किस प्रकार अपनाया जा सकता है इसे स्वयं या अन्य द्वारा पूछा जाना चाहिए और इसके लिए अंतर्दृष्टि की महत्ता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। “इस ग्रह पर उपस्थित समस्त मात्र हमारे उपयोग के लिए नही हैं” यह इस समूह का मूल मंत्र होगा।

अग्नि सदन
यह शक्ति को दर्शाता है। अग्नि का तात्विक लक्षण उष्मा उत्पन्न करना है। प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार अग्नि उन आठ रक्षकों में से एक है जो इस ब्रह्मांड की रक्षा करते हैं और ये आठों अष्ट दिक् पालक (अष्ट- आठ, दिक्- दिशा, पालक- रक्षक) के नाम से जाने जाते हैं। इस समूह के छात्रों का ऐसा विश्वास होना चाहिए कि वो, हमें प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधनों के रक्षक हैं और जहाँ कहीं भी आवश्यक हो उन्हें अन्य लोगों को भी अग्नि के बारे में जानकारी देनी चाहिए।

मारुत सदन
यह गतिशीलता का द्योतक है। पुराणों में 49 प्रकार के मारुत या वायु का उल्लेख किया गया है। इनमें से 7 सबसे महत्वपूर्ण हैं जो इस प्रकार हैं -1. प्रवाह, 2. अवाह, 3. उद्वाह, 4. संवाह, 5. विवाह , 6. परवाह और 7. परावाह। जो वायु महासागर से जल ले जाती है उसे उद्वाह कहते हैं। इस समूह से जुड़े छात्रों को क्रांतिकारी विचारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रख सकें। उन्हें वायु प्रदूषण के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और नवोन्मेषी विचारों पर कार्य करने का प्रयास करना चाहिए जिससे वायु को शुद्ध रखा जा सके। ग्रामीण समुदाय में वे स्वच्छ वायु की महत्ता का प्रसार करेंगे तथा दूसरे लोगों को भी हमारे गाँव को कार्बन मुक्त करने के लिए समझाएंगे।

भूमिका एवं उत्तरदायित्व :
सदन के संयोजक
 कॉलेज के प्रधानाचार्य मुख्य संयोजक होंगे।
 प्रत्येक सदन के संयोजक एक अध्यापक होंगे जो कि सदन से संबंधित सभी क्रियाकलापों के लिए उत्तदायी होंगे।
 सदन के संयोजकों पर सदन की गतिविधियों से संबंधित रिपोर्ट को साझा करने के लिए तिमाही बैठक का आयोजन करने की जिम्मेदारी होगी।

सदन का कप्तान
 सदन के सदस्यों द्वारा नियमों का पालन कराने की सुनिश्चितता का उत्तरदायित्व ।
 द्वि-साप्ताहिक या द्विमासिक आधार पर सभी सदस्यों के साथ बैठक करना।
 कॉलेज में दाखिला लेने वाले नए बच्चों के लिए उन्मुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन करना, सदन, कॉलेज तथा समुदाय के प्रति उनके उत्तरदायित्व से उन्हें अवगत कराना।
 सदन से संबंधित छात्रों को आस-पास के कॉलेज में अपने सदन के तत्व की महत्ता की प्रस्तुतिकरण की योजना करना।
 स्थानीय समुदाय में जागरुकता फैलाने के लिए यह सुनिश्चित करना कि उनका सदन अक्टूबर मेला के लिए पूरी तरह तैयार है।
 ग्रिष्म कालीन शिविर में समन्वयक की भांति काम करना और यह सुनिश्चित करना कि ग्रिष्म कालीन शिविर के दौरान उनके सदन की समुचित भागीदारी हो।
 यह सुनिश्चित करना कि उनके सदन के सदस्य नियमित रूप से विद्यालय आ रहे हैं।
 अपने सदन के सदस्यों के साथ अपने विद्यालय के लिए कम से कम एक कार्यकलाप की योजना करना जो आपको गौरवांवित महसूस कराएगा।
 विद्यालय के किसी कार्यक्रम/ क्रियाकलाप में समन्वयक की भूमिका निभाना।
 सदन का कप्तान उस सदन के सदस्यों द्वारा चुना जाये।

सदन का उप-कप्तान
 कप्तान को उसके जिम्मेदारिओं को सुचारु रूप से करने में अनवरत सहयोग करना।
 कप्तान के अनुपस्थिति में कप्तान के कर्तव्यों का निर्वहन करना।
 सदन का उप कप्तान उस सदन के सदस्यों द्वारा चुना जाये।

सदन के सदस्य
 विद्यालय का प्रत्येक छात्र / छात्रा किसी ना किसी सदन की सदस्य होंगी।
 आप जहाँ भी रहें संबंधित सदन के अग्रदूत की भांति कार्य करें।
 3 सम्मान के नियम का अक्षरशः पालन करें (आत्म सम्मान, दूसरों के प्रति सम्मान और हमारे पर्यावरण के प्रति सम्मान)।
( 3 R Rule is: 1. Self Respect 2. Respect for others 3. Respect for the environment)
 जल को बचाएं तथा सुनिश्चित करें कि अन्य भी जल का प्रयोग बुद्धिमत्ता से कर रहे हैं। यदि कोई जल को व्यर्थ कर रहा है तो उसे आप जल की महत्ता के बारे में बताएं।
 सभी में इस जागरुकता का प्रसार करें कि धरती माता पर जीवन तभी तक अस्तित्व में रह सकता है जब हम इन पाँच तत्वों के बीच सामन्जस्य बनाकर चलेंगे क्योंकि ये पाँचों तत्व एक दूसरे के पूरक हैं।
 वर्ष में कम से कम एक बार अपने विद्यालय या अपने आस-पास के स्थान पर पौधारोपण की योजना बनाएं।
 अपने बड़ों विशेषकर अपने दादा-दादी या नाना-नानी से चर्चा करें कि किस प्रकार जल संरक्षण किया जा सकता है क्योंकि पूर्व में यह कार्य उनके द्वारा किया जाता था।
 जल और व्यर्थ वस्तुओं के स्थानीय स्तर पर पुनः प्रयोग की विधियों का पता लगाएं तता लोगों को इसकी जानकारी दें।
 निवास स्थान/ विद्यालय में जल के प्रयोग की निगरानी करें, जल के बर्बाद होने के कारणों का पता लगाएं और यदि संभव हो तो जल संरक्षण से संबंधित सूचना लोगों को प्रदान करें।
 उन समूहों के बच्चों को चिह्नित करें जो कि इन पाँच तत्वों की महत्ता के बारे में जानने के लिए उत्सुक हों (उन बच्चों को आप चुन सकते हैं जो आपके पास में रहते हों और दूसरे विद्यालयों में पढ़ते हों)। अक्टूबर मेला के दौरान उन्हें अपने कॉलेज में आने का निमंत्रण दें।
 कॉलेज में प्रति वर्ष आयोजित होने वाले अक्टूबर मेला में अपने को तैयार रखें और उसमें सक्रिय भागीदारी निभाएं।
 किसी भी कक्षा को न छोड़ें और नियमित रूप से विद्यालय आएं।
 विद्यालय को अपने घर के समान समझें और उसे साफ-सुथरा रखने का प्रयास करें।
 यदि आपके आस-पास कोई असहाय वृद्ध पुरुष या महिला हो तो उसके बारे में अपने सदन में चर्चा करें और प्रयास करें कि विद्यालय के स्टाफ या विद्यालय से जुड़े लोग उस असहाय की सहायता कर सकें (यह विचार सही व्यक्ति को चिह्नित करने के लिए है क्योंकि प्रति वर्ष अक्टूबर मेला में जो भी निधि जुटाई जाएगी उसका उपयोग इन्हीं असहायों की सहायता के लिए किया जाएगा)

दैनंदिन आधार पर व्यक्तिगत तौर पर प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ सलाह
o दांतों की सफाई करते समय नल को बंद रखें।
o पौधों के किनारे थाला बनाए ताकि मृदा जल को मजबूती से धारण किए रहे।
o नहाने में कम से कम पानी का प्रयोग करें।
o वाष्पोत्सर्जन कम करने के लिए लोगों को सुबह या शाम को पौधों की सिंचाई करने के लिए प्रेरित करें।
o लोगों को उन पौधों के रोपण की जानकारी दें जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है, इन पौधों की स्थानीय प्रजाति को चिह्नित करने का प्रयास करें।
o अपनी गाड़ी को रबड़ की पाइप में लगे फव्वारे से धोएं इससे कम पानी में ही आसानी से गाड़ी साफ हो जाएगी।
o यदि सम्भव हो तो शौचालय के हौज में एक ईंट रख दें इससे दैनिक प्रयोग के लिए अधिकतम जल का बचाव किया जा सकता है।
o अपने आस-पास सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा दें।

सदन के सदस्यों का कार्य
दैनिक :
 प्रातःकालीन सभा के लिए प्रत्येक सदन के कप्तान और उप-कप्तान उत्तरदायी होंगें।
 आज का विचार- प्रत्येक सदन के कप्तान और उप-कप्तान इसके लिए उत्तरदायी होंगे।
साप्ताहिक
 हर महीने के प्रथम सप्ताह को “स्वच्छता सप्ताह” के रूप में मनाया जाये. ऐसा विद्यालय ही नहीं बल्कि घर और आस पास सब जगह सुनिश्चित किया जाये।
 महीने का दुतीय सप्ताह को “धन्यवाद देने वाले सप्ताह” के रूप में मनाया जाये. ऐसा मानते हुए इस सप्ताह में जो भी आप की किसी भी तरह की मदद करे, उसको धन्यवाद देना नहीं भूलना है। अगर कोई बच्चा भूल जाये तो उसका साथी उसको याद दिलाये।
 महीने के तृतीय सप्ताह को ” गलती मानाने और छमा मांगने ” के रूप में मनाया जाये. ऐसा केर आप एक अच्छे और सभ्य मनुष्य के भाती समाज में अच्छा सन्देश देंगे।
 चतुर्थ और सबसे महत्वपूर्ण – इस सप्ताह आप यह सुनिश्चित करेंगे की आप अपने माता पिता, गुरुजनो , अपने से बड़ो का सम्मान करे. जहा तक हो सके उनका सहयोग करे और उनको इस बात का एहसास दिलाये के उनके कठिन परिश्रम के वजह से आप लोग अच्छा कर पा रहे हैं। उनको यह बताना न भूलें की वह लोग ही आप के रोल मॉडल हैं. आप लोग आने वाले समय मे उनके जैसा ही ईमानदार , मेहनती और समाज के लिए अच्छे सोच वाला नागरिक बनेंगे।
वार्षिक :
 एक बार कॉलेज द्वारा निर्णय लिए जाने के बाद प्रत्येक वर्ष अक्टूबर माह में मेला का आयोजन किया जाएगा और प्रत्येक सदन को इसमें अपनी सहभागिता और प्रस्तुति देनी होगी।
 वर्षा ऋतु के प्रारंभ होते ही पौधारोपण करना।
 सभी सदन महान व्यक्तियों के जन्म की वर्षगाँठ को धूम-धाम से मनाए जाने की जिम्मेदारी लेंगें।
 सदन की प्रकृति के अनुसार ये उत्सव मनाए जाएंगे – जैसे-
विश्व वन्य जीव दिवस/ मैरी क्यूरी/ महात्मा फूले/ दीपावली- अग्नि सदन
सी वी रमन/ बाल दिवस/ डॉ. अम्बेडकर जयंती/ होली/ छठ पूजा – जल सदन
विज्ञान दिवस/ महावीर जयंती/ शिक्षक दिवस/ वसंत पंचमी- मारुत सदन
पृथ्वी दिवस/ विवेकानंद जयंती/ सावित्री बाई फूले जयंती/ बुद्ध पूर्णिमा/ गुरु पूर्णिमा- व्योम सदन

Note: इस दस्तावेज को अंग्रेजी में बनाकर उसका हिंदी अनुवाद किया गया है, इस वजह से भाव में आये किसी अंतर और त्रुटि के लिए छमा करे। ये विचार फाउंडेशन का बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिए है, ये विद्यालयों के ऊपर निर्भर करता है अगर उनको ये मॉडल पसंद आये और अपने यहां लागू करना चाहे.
                                                                                                           सौजन्य से- विक्रम फाउंडेशन

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